दिल पे क्या गुज़री वो अनजान क्या जाने



तेरी सांस के साथ चलती है मेरी हर धडकन,
और तुम पूछते हो मुझे याद किया या नहीं

बदनाम किया था जिसके नाम से इस शहर के लोगों ने
कसम उस शख्स की अब शहर मे तूफान आएगा

ज़िंदगी में आईना जब भी उठाया करो “पहले देखो”फिर “दिखाया" करो.

मेरे हर हकीकत को आवारा ख्वाब समझने वालो
तुम्हारी नींद उड़ाने के लिए मैं अकेला काफी हूँ

हवा के साथ उड़ गया घर इस परिंदे का,
कैसे बना था घोसला वो तूफान क्या जाने

दिल पे क्या गुज़री वो अनजान क्या जाने,
प्यार किसे कहते है वो नादान क्या जाने,

चलो मुस्कुराने की वजह ढूंढते हैं..जिन्दगी तुम हमें ढूंढो..हम तुम्हे ढूंढते हैं.

हम भी मुस्कराते थे कभी बेपरवाह अन्दाज़ से
देखा है आज खुद को कुछ पुरानी तस्वीरों में

बचपन में जहां चाहा हंस लेते थे,जहां चाहा रो लेते थे पर 
अब मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसुओ को तन्हाई

जिन्दगी की दौड़ में,तजुर्बा कच्चा ही रह गया.
हम सीख न पाये 'फरेब'और दिल बच्चा ही रह गया 

किलो के भाव से रद्दी में बिक गयी वो सब कॉपिया,
जिनमें मोती से शब्दों में लिखे होमवर्क पर गुड और वैरी गुड मिले थे कभी

लबों पे उसके कभी बद्दुआ नहीं होती
बस एक माँ है जो मुझसे ख़फ़ा नहीं होती

भेजे गए फ़रिश्ते हमारे बचाव को
जब हादसात माँ की दुआ से उलझ पड़े 

मैंने रोते हुए पोंछे थे किसी दिन आँसू
मुद्दतों माँ ने नहीं धोया दुपट्टा अपना 

मुझे बस इस लिए अच्छी बहार लगती है
कि ये भी माँ की तरह ख़ुशगवार लगती है

सर फिरे लोग हमें दुश्मन-ए-जाँ कहते हैं
हम जो इस मुल्क की मिट्टी को भी माँ कहते हैं 

सिसकियाँ उसकी न देखी गईं मुझसे ‘राना’
रो पड़ा मैं भी उसे पहली कमाई देते 

हवा दुखों की जब आई कभी ख़िज़ाँ की तरह
मुझे छुपा लिया मिट्टी ने मेरी माँ की तरह 

हो चाहे जिस इलाक़े की ज़बाँ बच्चे समझते हैं
सगी है या कि सौतेली है माँ बच्चे समझते हैं

हँसते हुए माँ बाप की गाली नहीं खाते
बच्चे हैं तो क्यों शौक़ से मिट्टी नहीं खाते 

वक्त और दौलत आपको हर वक्त पता होता है कि आपके पास कितनी दौलत है,
लेकिन आप कितनी भी दौलत खर्च करके यह नही जान सकते कि आपके पास कितना वक्त है

रुलाना हर किसी को आता है,हँसाना भी हर किसी को आता है,
रुला के जो मना ले वो "पापा" है.और जो रुला के खुद भी रो पड़े वही "माँ" है

जब कागज़ पर लिखा  मैंने माँ का नाम..!!
कलम अदब से बोल उठी हो गए चारों धाम