बदनाम क्यों करते हो तुम इश्क़ को , ए दुनिया वालो…मेहबूब तुम्हारा बेवफा है ,तो इश्क़ का क्या कसूर
वक्त ने बदल दिए तेरे मेरे रिश्ते की परिभाषा पहले दोस्ती,फिर प्यार और फिर अजनबी सा अहसास
बेक़रारी तेरी मेरी कुछ हद से गुज़र गई अब तो जब तुमको देखू तब ही क़रार आए इस दिल को
मेरी आँखों में आँसू नहीं बस कुछ नमी है,वजह तू नहीं बस तेरी ये कमी है
मेरी आँखों में आँसू नहीं बस कुछ नमी है,वजह तू नहीं बस तेरी ये कमी है
सुनो! या तो मिल जाओ, या बिछड जाओ, यू सासो मे रह कर बेबस ना करो
बस ऐक चहेरे ने तन्हा कर दिया हमे, वरना हम खुद ऐक महेफिल हुआ करते थे
किसी रोज़ होगी रोशन, मेरी भी ज़िंदगी.इंतेज़ार सुबह का नही, किसी के लौट आने का है
उदासियों की वजह तो बहुत है जिंदगी में,पर बेवजह खुश रहने का मजा ही कुछ और है
सब छोड़े जा रहे है आजकल हमें, ऐ जिन्दगी " तुझे भी इजाजत है,जा ऐश कर
यूँ तो शिकायतें बहुत है तुझसे करने को पर सुलह के लिए तेरी एक मुस्कान ही काफी है
दिल की उम्मीदों का हौसला तो देखो… इन्तजार उसका.. जिसको एहसास तक नहीं
कितना लुत्फ ले रहे है,लोग मेरे दर्द का,ऐ इश्क देख तुने तो मेरा तमाशा बना दिया.
सुना था मोहब्बत मिलती है, मोहब्बत के बदले | हमारी बारी आई तो, रिवाज ही बदल गया
या जिन्दगी तेरी भी, अजब परिभाषा है..सँवर गई तो जन्नत, नहीं तो सिर्फ तमाशा है
बस रिश्ता ही तो टूटा है मोहब्बत तो आज भी मुझे तुमसे है
सूखे होंटो से ही होती है मीठी बातें अक्सर जब बुझ जाये प्यास तो लहजे बदल जाते हैं
तुझसे मोहब्बत ही सबसे बड़ा गुनाह था मेरा.ज़िन्दगी भर के लिये आँसू सज़ा में मिल गये
कांच के टुकड़े बनकर बिखर गयी ज़िन्दगी मेरी किसी ने समेटा ही नहीं हाथ ज़ख़्मी होने के डर से
मोहब्ब्ते और भी बढ़ जाती है जुदा होने से,तुम सिर्फ मेरे हो इस बात का ख्याल रखना
हँस कर कबूल क्या कर ली सजाएँ मैंने,ज़माने ने दस्तूर ही बना लिया हर इलज़ाम मुझ पर लगाने का
मेरे दिल के करीब है वो शख़्श इतना.कि मालूम नही होता फर्क उसमें और मुझमें.
ज़रूरी नही कि हर रिश्ते का अंत लड़ाई ही हो कूछ रिश्ते किसी की खुशी के लिये भी छोड़ने पड़ते है
इश्क का खेल अधूरा ही रहता है पगली.जो पूरी हो जाये वो सच्ची मोहब्बत कहॉं.
ख़ामोश सा माहौल और बेचैन सी करवट है,ना आँख लग रही है और ना रात कट रही है
इरादे मेरे हमेशा साफ़ होते है शायद.इसीलिए कई लोग मेरे खिलाफ होते है
चल रही थी बात हुस्न और इश्क़ की,हमने तुम्हारा नाम लेकर बात शुरू भी की और खत्म भी
कितनी मासूम सी थी दुनिया मेरी एक मैं था....और एक दोस्ती तेरी
इतने प्यार से चाहा जाए तो पत्थर भी अपने हो जाते हैँ.न जाने ये मिट्टी के इंसान इतने मगरूर क्योँ होते हैँ
इतने प्यार से चाहा जाए तो पत्थर भी अपने हो जाते हैँ.न जाने ये मिट्टी के इंसान इतने मगरूर क्योँ होते हैँ
तुम मुझे मौक़ा तो दो ऐतबार बनाने का थक जाओगे मेरी वफ़ा के साथ चलते चलते
मोहब्बत की मिसाल में बस इतना ही कहूँगा .बेमिसाल सज़ा है, किसी बेगुनाह के लिए
जिस शहर में बर्बाद हुआ "मैं" चन्द मुहब्बत के लिए सुना है वहाँ के पत्थरो को भी मुहब्बत हो गयी है मुझ से
मिल सके आसानी से , उसकी ख्वाहिश किसे है? ज़िद तो उसकी है … जो मुकद्दर में लिखा ही नहीं
मिल ही जायेगा, हमे भी कोई टूट कर चाहने वाला.पूरा "शहर का शहर" तो बेवफा नही हो सकता
हर रिश्ते का नाम जरूरी नहीं होता मेरे दोस्त कुछ बेनाम रिश्ते रुकी जिंदगी को साँस देते है
कईं रोज से कोई नया जखम न दिया पता करो सनम ठीक तो है न
कौन खरीदेगा अब हीरो के दाम में तुम्हारे आँसु ;वो जो दर्द का सौदागर था, मोहब्बत छोड़ दी उसने
इस से तो उसकी मोहब्बत में कमी होती है माँ का एक दिन नहीं होता है सदी होती है
मोहब्बत छोड के हर एक जुर्म कर लेना यारों.वरना तुमभी मुसाफिर बन जाओगे मेरी तरह तन्हा रातों के.
मुझे छोड़ कर वो खुश है तो शिकायत कैसी,अब मैं उन्हें खुश भी ना देखूं तो मोहब्बत कैसी
लौट आती है हर दफा इबादत मेरी 'खाली,जाने किस मंजिल पर खुदा रहता है
मुद्दतों के बाद उसने जो आवाज़ दी मुझे.कदमों की क्या औकात थी..साँसे भी ठहर गयीं