पत्थर तो लोग इसीलिए पूजते है जनाब,,,
क्योंकि विश्वास के लायक इंसान नहीं मिलता.
हमने तो एक ही शख्श पर चाहत खत्म कर दी..
अब मुहब्बत किसे कहते है मालूम नही.
हो सके तो मुड़ के देख लेना, जाते जाते,
तेरे आने के भ्रम में, ज़िन्दगी गुज़ार लेंगे
मैं अपनी मोहब्बत में बच्चों की तरह हूँ..
जो मेरा है ....सिर्फ मेरा है
कहाँ तलाश करोगे तुम मुझ जैसा कोई
जो तुम्हारे सितम भी सहे और तुमसे मोहब्बत भी करें
तेरी यादों को समेटे रखा है हमने
ताकि तू कभी बेवफा होने का इल्ज़ाम न दे.
उदास दिल है मगर मिलता हूँ हर एक से हँसकर..
यही एक अजब हुनर सीखा है मैंने बहुत कुछ खो देने के बाद
समुद्र बड़ा होकर भी अपनी हद में रहता है जबकि मनुष्य छोटा होकर भी औकात भूल जाता है
कभी साथ बैठो तो कहूँ क्या दर्द है मेरा,अब तुम दूर से पूछोगे तो खैरियत ही कहूँगा
लोग कहते हैं मोहब्बत में असर होता है
कौन से शहर में और किधर होता है.
मत पूछ मेरे सब्र की इँतहा कहा तक है तू सितम करले तेरी हसरत जहाँ तक है
वफा की उम्मीद जिसे होगी उसे होगी हमे तो ये देखना है तू बेवफा कहा तक है
दिल से पूछो तो आज भी तुम मेरे ही हो..
ये और बात है कि किस्मत दगा कर गई.
सिमट गया मेरा प्यार भी चंद अल्फाजों में ,
जब उसने कहा, मोहब्बत तो है पर तुमसे नहीं.
मोहब्बत का असर कुछ इस तरह जिन्दा कर देता हूँ मैं।
बेवफाओ को भी गले लगाकर शर्मिंदा कर देता हूँ मैं
हमें नहीं मालूम सफर में कितने काँटे और लगेंगे किसकी उँगली हाथमें होगी
किसके खूनी दाग लगेंगे शायद कोई साथ न देगा चलते घावों के भी घाँव लगेंगे
जाएंगे कहाँ ? सूझता नही चल पड़े मगर, रास्ता नही
क्या तलाश है ? कुछ पता नही बुन रहे हैं दिल, ख़्वाब दम-बा-दम.
लोग पढ़ लेते हैं मेरी आखों से तेरे प्यार का नशा..
मुझसे अब तेरे इश्क़ की हिफाजत नहीं होती..
मोहब्बत का असर कुछ इस तरह जिन्दा कर देता हूँ मैं।
बेवफाओ को भी गले लगाकर शर्मिंदा कर देता हूँ मैं
काम आखिर जज्बा-ए-बे-इख्तियार आ ही गया,
दिल कुछ इस सूरत से तड़पा उनको प्यार आ ही गया
किसी के लिए वक़्त गुजारने का तरीका,तो किसी के लिए मोहोब्बत बन गयी,
न जाने जिंदगी,,,क्या से क्या बन गयी,
चुप चाप चल रहे थे सफर-ऐ-हयात में
तुम पे नजर पड़ी तो गुमराह से हो गये
झूठ बोल कर मैं भी दरिया पार कर जाता..
डूबो दिया तो मुझे सच बोलने की आदत नें.
मोहब्बत का ख़ुमार उतरा तो..ये एहसास हुआ..जिसे मँजिल समझते थे वो तो बेमक़सद रास्ता निकला.
अगर रूह को रूह की प्यास ना होती तो दिल को भी किसी की तलाश ना होती
आएंगे हम याद तुम्हे एक बार फिर से जब तेरे अपने फ़ैसले तुझे सताने लगेंगे
बिछड़कर फिर मिलेंगे यकीन कितना था बेशक ख्वाब ही था मगर हसीन कितना था.
अक्सर पूछते है लोग किसके लिए लिखते हो दिल अक्सर कहता है काश बता पाते कौन है वो
जनाजा देखकर मेरा,वो बेवफा बोल ही पडी वही "मरा" है ना, जो मुझ पर "मरता" था.
तलाश ना कर जमीन-ओ-आसमान की गर्दिश में.मैं तेरे दिल में नही तो कहीं भी नही.
मशहूर होने की खवाहिश मे कुछ यू बदनाम हुऐ है मानो
जैसे हाथो मे जाम लिऐ कोई आशिक बदनाम हो जाता है
हम शोलों पर चलने वाले ना डरते है चंद अंगारों से,,,
अब गूंजेगी हमारी पावन धरती जय श्री राम के नारों से
कोई खास फर्क नहीं पडता अब ख्वाहिशें अधूरी रहने पर,
बहुत करीब से कुछ सपनों को टूटते हुए देखा है मैंने
कभी ले मुझसे मेरे दिन और रात का हिसाब..
फिर ढूँढ आपने सिवा कुछ और मेरी जिंदगी में.
कहा मिलेगा तुम्हे मुझ जैसा कोई जो तुम्हारे सितम भी सहे और तुमसे मोहब्बत भी करे!
समुद्र बड़ा होकर भी अपनी हद में रहता है जबकि मनुष्य छोटा होकर भी औकात भूल जाता है
चिंता का विषय:जिस देश में लोगो में "पिछड़ा" बनने की होड़ लगी हो वो "देश" आगे कैसे बढेगा.
वो जो मेरे जिस्म से प्यार करती थी.आज देखती भी नही..
वो जो रूह में बस गयी थी आज भी मेरे साथ है.
वो कहते है..की हम उनकी झूठी तारीफ करते है ए खुदा बस एक दिन आईने को जुबान दे दे
दर्द जब हद से गुज़र जाएगा तो पूछूंगा उनसे.ज़ख़्म ही देते हो या जान लेने का भी हुनर रखते हो
काश तेरी याद़ों का खज़ाना बेच पाते हम.. हमारी भी गिनती आज अमीरों में होती
कर तो सकता था मैं भी मोहब्बत उससे..पर सोचा..हसीन हैं तो बेवफा भी होगी ही.
उदास दिल है मगर मिलता हूँ हर एक से हँसकर..यही एक अजब हुनर सीखा है मैंने बहुत कुछ खो देने के बाद
फिक्र तो बहुत थी सभी अपनों को मेरी मगर वक्त ही मेरा हमदर्द ना था
मेरी जिंदगी मै खुशियां तेरे बहाने से थी आधी तुझे सताने से थी आधी तुझे मनाने से थी
मैं सब कुछ भूल जाता हूँ; इसी इक बात पे हमदम,सिरहाने जब भी तेरी चिट्ठियों का साथ होता है
मेहरबां हो कर बुला मुझे ,जहाँ कभी जिस वक्त मैँ गया हुआ वक्त नहीँ कि फिर आ न सकूँ
तेरी यादों में बिखरा पड़ा है मेरा वजूद .तुमने कभी ढूंढा ही नहीं मुझे ढूढ़ने वालों की तरह
जन्नत का हर लम्हा दीदार किया था माँ तूने गोद मे उठा कर जब प्यार किया था
नींद न आए,तो भी; सो जाना चाहिए जनाब...
जागते रहना,मर्ज़-ए-इश्क़ का; इलाज नहीं होता
मुझ पर सितम करो तो तरस मत खाना.क्योकि खता मेरी हैं मोहब्बत मैंने किया हैं
मेरी फितरत में नहीं अपना गम बयां करना अगर तेरे वजूद का हिस्सा हूँ तो महसूस कर तकलीफ मेरी
छोड़ो बिखरने देते हैं ज़िंदगी को आखिर समेटने की भी एक हद होती है
मत हो उदास इतना किसी के लिये...ऎ दिल..किसी के लिए जान भी दे दोगे तो लोग कहेंगे...,इसकी उम्र ही इतनी थी
बेशक वो ख़ूबसूरत आज भी है,पर चेहरे पर वो मुस्कान नहीं,जो हम लाया करते थे
बेशक तू बदल ले अपने आपको लेकिन ये याद रखना,तेरे हर झूठ को सच मेरे सिवा कोई नही समझ सकता
ना छेड़ किस्सा ऐ उल्फत का, बड़ी लम्बी कहानी है .मैं गैरों से नहीं हारा, ये किसी अपने की मेहरबानी है
नहीं पढ़ते आज कल वो ख़त मेरे..डर है मेरे लफ्ज़ उनके लब ना छू लें
कांच के टुकड़े बनकर बिखर गयी ज़िन्दगी मेरी…
किसी ने समेटा ही नहीं हाथ ज़ख़्मी होने के डर से
ठहरो जरा इत्मीनान कर लेने दो,अपनी आँखोँ से तुम्हे गैर की बाहोँ मेँ देखकर्
रौशन है मेरा इश्क़ अब तेरे जमाल से ,तू मेरे प्यार के लिए पूनम का चाँद है
मिरी चाहत को ज़रा कामयाब़ होने दो,फलक का चाँद मेरे यार भूल जाओगे
बहुत खूबसूरत है ना वहम ये मेरा कि तुम जहाँ भी हो सिर्फ मेरे हो
दो मिनट का मौन उस ऑस्ट्रेलियाई फील्डर के लिए जो धोनी के एंड पर थ्रो फेंककर उसे रन आउट करने की कोशिश कर रहा था
फुर्सत गर मिले, तो पढ़ना मुझे जरूर नायाब उलझनों की, मैं मुकम्मल किताब हूँ
कौन कहता है तेरी याद से बेख़बर हूँ मैं;⁰ज़रा बिस्तर की सिलवटो से पूछ, मेरी रात कैसे गुजरती है
औकात क्या है तेरी ऐ जिंदगी चार दिन की मोहब्बत भी तुझे तबाह कर देती है
ये शायरी की महफ़िल बनी है आशिकों के लिये ,बेवफाओं की क्या औकात जो शब्दों को तोल सके
शायरी से ज्यादा प्यार मुझे कहीं नही मिला.ये सिर्फ वही बोलती है, जो मेरा दिल कहता है
बहुत गौर से देखने पर जिंदगी को जाना मैंने,⁰दिल जैसा दुश्मन जमाने में नहीं मिलता
तुम क्यूँ नहीं समझते मेरे दिल के हाल को,क्या तुम्हारे दिल की जगह दिल नहीं है क्या
खतम हो गई कहानी बस कुछ अलफाज बाकी है, एक अधूरे इश्क की एक मुकम्मल सी याद बाकी है
करीब आओगे तो शायद तुम हमें समझ लोगे, यह दूरियाँ तो सिर्फ गलतफहमियाँ बढ़ाती है
एक लाचारी सी बसती है सीने में मेरे..कि तुझ बिन मुझे जीना नही आता
अभी तो कुछ ही लफ़्ज़ों में समेटा है तुम्हे अभी तो मेरी ज़िन्दगी की किताब में तेरी पूरी कहानी बाकि है
सुना है रोज़ - रोज़ मिलने से मोहब्बत कम नहीं होती यह सोच कर हम उनसे मिला नहीं करते
मेरी नज़रों ने छुआ ;तुमको बड़े तहज़ीब से ,ये सलीक़ा इश्क़ में आया बडी मुद्दत के बाद
नदी के किनारों सी लिखी उसने तकदीर हमारी,ना लिखा कभी मिलना हमारा, ना लिखी जुदाई हमारी
मेरे हिस्से में कुछ बहार आये ।लौट के फिर तू एक बार आये
बंद कर दिए है हमने दरवाज़े इश्क के,पर तेरी याद हैं कि दरारों में से भी आ जाती हैं
एक तेरे बगैर ही ना गुज़रेगी ये ज़िंदगी बता मैं क्या करूँ ,सारे ज़माने की मोहब्बत ले कर.
उनकी दुआओं में असर कुछ न कुछ तो है उनके बगैर लाश हूँ, पर सांसे तो चल रही
जिंदगी जीने के लिए मिली थी हमने किसी की हसरत में गुजार दी